बस लड़ता रहा...जीता नहीं.. .करता भी क्या.. बेबस था मैं..
जीतने की तलब उतनी न थी.. हारना ना था बस.. चाहे जितना बेबस था मैं...
डटा रहा.. लगा रहा.. आगे बेशक बड़ा ना मैं...
किस्मत मान कर हंस पड़ा... करता भी क्या.. बेबस था मैं...
उससे कभी न माँगा मैंने... भले कितना बेबस था मैं....
उससे मांगता भी तो क्या... जिसकी मर्ज़ी से बेबस था मैं...
बेकार नहीं... पर आज भी बेबस हूँ मैं ...
बुजदिल नहीं... पर आज भी बेबस हूँ मै .....
हारा नहीं... पर आज भी बेबस हूँ मैं ...
कल भी बेबस था मैं... आज भी बेबस हूँ मैं....